ज्योतिषशास्त्र के अनुसार गठिया रोग

चिकित्सा विज्ञान के अनुसार गठिया रोग तब होता है जब शरीर में उत्पन्न यूरिक एसिड का उत्सर्जन समुचित प्रकार से नहीं हो पाता है। पानी में फ्लोराइड की मात्रा अधिक होने पर भी जोड़ सख्त होने लगते हैं। इससे जोड़ों के बीच स्थित कार्टिलेज घिसने लगता है और दर्द की अनुभूति होती है। आयुर्वेद के अनुसार जोड़ों में वात का संतुलन बिगड़ने पर जोड़ों में सूजन आ जाती है और यह धीरे-धीरे गठिया रोग का रूप धारण कर लेती है। 

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार वात का कारक ग्रह शनि है। कुण्डली में शनि की स्थिति अनुकूल नहीं होने पर इस रोग का सामना करना पड़ता है। शनि के अलावा बुध और शुक्र भी इस रोग को प्रभावित करते हैं। जिनकी जन्मपत्री में शनि तीसरे, छठे, आठवें, अथवा बारहवें स्थान का स्वामी होता है और बुध एवं शुक्र को देखता है उन्हें गठिया रोग का दर्द सहना पड़ता है। लेकिन बुध या शुक्र शनि के साथ एक ही घर में बैठे हों तब इस रोग के होने की संभावना काफी कम रहती है। 

आचार्य वराहमिहिर के अनुसार पहले घर में बृहस्पति हो और सातवें घर में शनि विराजमान हो इस स्थिति में भी गठिया रोग होता है। शनि की दृष्टि दसवें घर एवं दसवें घर के स्वामी पर होने से भी इस रोग की आशंका रहती है। वृष, मिथुन एवं तुला राशि के व्यक्तियों में इस रोग की संभावना अधिक रहती है। जिनकी कुण्डली में शनि चन्द्रमा को देखता है उन्हें भी गठिया रोग की पीड़ा सहनी पड़ती है। 

गठिया रोग के ज्योतिषीय उपचार
शनिवार के दिन संध्या के समय शनि देव को तिल एवं तिल का तेल अर्पित करें। 
तिल के तेल से जोड़ों की मालिश करें।
उड़द की दाल से बनी खिचड़ी दान करें और स्वयं भी खाएं। 
जितना संभव हो शनि मंत्र "ओम् शं शनिश्चराय नमः" मंत्र का जप करें।
गुरूवार के दिन गाय को चने की दाल, रोटी एवं केला खिलाएं।
नियमित रूप से गुरू मंत्र "ओम् बृं बृहस्पतये नम:" मंत्र का जप करें।

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